मंदबुद्धि बालक का अर्थ एवं परिभाषा को परिभाषित करें
मंदबुद्धि बालक का अर्थ एवं परिभाषा को परिभाषित करें
मंद बुद्धि बालक का अर्थ:- मंदबुद्धि बालक का तात्पर्य ऐसे बालक से है जो मानसिक रूप से कमजोर होते हैं जिनके मानसिक और बुद्धि इतने कम विकसित है कि उनमें मानसिक क्षमता कम होती है ऐसे बालकों को मंदबुद्धि बालक ,धीमी गति से सीखने वाले बालक ,मानसिक रूप से पिछड़ा बालक तथा मानसिक रूप से विकलांग बालक के रूप में इन सभी नामों का प्रयोग किया जाता है
क्रो एवं क्रो के अनुसार – ” ऐसे बालक जिनकी बुद्धि लब्धि 70 से कम होती है उनको मंदबुद्धि बालक कहते हैं” |
बेण्डा के अनुसार – “एक मानसिक दोष वाला व्यक्ति वह है, जो अपने आपको तथा अपने क्रियाकलापों को व्यवस्थित करने में असमर्थ होता है या उसे यह सब सिखाना पड़ता है तथा जिसको स्वयं के और समुदाय के कल्याण के लिए निरीक्षण, नियन्त्रण तथा देखभाल की आवश्यकता होती है।”
मंदबुद्धि बालक के स्तर या प्रकार का वर्गीकरण:-
मानसिक दुर्बलता बालकों के बुद्धि परीक्षण के द्वारा मापा कर । विभिन्न श्रेणी के दुर्बलता में बांटा जाता है ये बालक अपनी मानसिक चिंता के कारण ऐसी व्यवहार करते हैं जिससे हम मंदबुद्धि बालक मानते हैं। शैक्षिक या सामाजिक रूप में इसे तीन भागों में बांटा गया है ।
1.जड़ बुद्धि
2.मूढ़ बुद्धि
3.मुर्ख बुद्धि
1.जड़ बुद्धि :-
ऐसे बालक की बल बुद्धि 0 -25 I.Q तक होती है ऐसे बालक अपनी देखरेख नहीं कर सकते समाज में अपने जीवन यापन नहीं कर सकते तथा अपनी या अपने आप कोई भी कार्य नहीं कर कर सकते है यहाँ तक की ठीक से बोल भी नहीं पाते है ऐसे बालक को विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है ऐसे बालक की आयु बहुत कम होती है यदि यह जीवित रहते हैं तो दूसरों के सहारे पर ही रहना पड़ता है
2.मूढ़ बुद्ध:-
ऐसे बालकों की I.Q 25 से 50 के बीच होती है इन श्रेणी के बालकों की बौद्धिक क्षमता या मानसिक स्तर 3 से 7 वर्ष के बालकों के बराबर होती है इनमें सीखने की योग्यता अल्प होती है इन श्रेणी के बालकों मे अक्षर ज्ञान का अभाव रहता है इनकी शारीरिक बनावट बेढोल या कुरुप होती है । यह प्रत्यक्ष रुप से मिलनसार व्यक्ति होते हैं ।
3.मूर्ख बुद्धि:-
इनकी बुद्धि लब्धि 50 से 70 तक होती है इनकी बौद्धिक क्षमता या मानसिक स्तर h8 से 11 वर्ष के उम्र के बालकों की क्षमता के अनुरूप होती है इनमें सामाजिक आयोजन का स्तर एवं किशोरावस्था के उम्र के अनुसार बदलती रहती है । साधारणतः इसकी मस्तिष्क की विकृति के लक्षण नहीं दिखाई पड़ते हैं इन पर दूसरों के द्वारा निगरानी रखना जरूरी होता है क्योंकि बुद्धि की मात्रा सीमित रहने के फलस्वरुप यह जो भी करते हैं इसके परिणाम को नहीं समझते हैं ।इन्हे शिक्षण प्रशिक्षण के द्वारा व्यवहारिक कौशलों के योग बनाया जाता है जिससे वह आत्मनिर्भर हो सके ।