लिंग की समानता में संवैधानिक प्रावधान
महिलाओं के लिए संवैधानिक प्रावधान क्या क्या है | भारत में जेंडर का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य क्या है | महिलाओं के संवैधानिक एवं विधिक अधिकार कौन कौन है | महिलाओं के लिए संवैधानिक प्रावधान क्या है | संवैधानिक मौलिक अधिकार क्या है | महिलाओं के लिए बने कानून कौन कौन से है | महिलाओं के लिए संविधान में कौन कौन प्रावधान है |
लिंग की समानता में संवैधानिक प्रावधानों का वर्णन करें।
विश्व की आबादी का लगभग आधा भाग महिलाओं का है ,जो विकास में महत्वपूर्ण योगदान करती है फिर भी परिवार और समाज में उन्हें आज तक वह स्थान नहीं मिल सका जिसकी वह वास्तविक हकदार है ।आज भी बराबरी के इंतजार में हैं ।भारतीय समाज आरंभ से ही पुरुष प्रधान समाज रहा है। भारतीय पुरुष- प्रधान समाज में प्रत्येक काल में महिलाओं को समाज में चुनौतियों का सामना करना पड़ा है और अभी भी पड़ रहा है।भारतीय समाज में महिलाओं द्वारा किए गए घरेलू कार्य को उतना सम्मान नहीं दिया जाता है क्योंकि यह पहले से ही मान्यता प्रचलित है कि घर के सभी कार्य उसके लिए ही बना हैं ।यह तो उसे ही करना होगा ।भारत में महिलाओं को सशक्त बनाने तथा लिंग की समानता की दृष्टि से कई कानून बनाएँ गए हैं जिसमे महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव की समाप्ति, निर्णय लेने में महिलाओं को महत्व, महिलाओं को आरक्षण,महिलाओं को पुरुष के समान वेतन, महिला आयोग ,महिला के लिए राष्ट्रीय नीति इत्यादि का प्रयास किया गया। लिंग की असमानता एवं महिलाओं पर होने वाले अत्याचार को रोकने, महिलाओं के अधिकारों के हनन को कम करने के लिए, भारतीय सविधान में मानवाधिकार को दो भागों में बाटा गया है।
1. प्रथम मौलिक – अधिकार है, जिसका उल्लेख संविधान में भाग-3 तथा अनुछेद 12 से 35 तक में क्या गया है।
2. द्वितीय श्रेणी में राज्य के नीति निर्देशक तत्व आते हैं जिसका उल्लेख संविधान के भाग- 4 तथा अनुछेद 36 से 51 तक में किया गया है।
लिंग समानता हेतू संवैधानिक प्रावधान :-
1. अनुच्छेद 14 :-
इस अनुच्छेद के अंतर्गत स्पष्ट प्रावधान है कि कानून के लिए सभी समान है। सभी को कानून के द्वारा समान संरक्षण सुरक्षा प्राप्त होगा ।किसी भी नागरिक को जाति ,रंग ,धर्म, लिंग, वर्ण, स्थान, भाषा आदि के आधार पर ना तो विशेषाधिकार प्राप्त होगा और ना ही उसे पूर्णतः वंचित किया जा सकता है ।
2. अनुच्छेद 15 :-
राज्य किसी भी नागरिक का विरोध किसी भी आधार पर नहीं करेगा । कोई नागरिक केवल धर्म ,जाति,लिंग के आधार पर किसी भी दायित्व या शर्त के अधीन नहीं होगा व शैक्षणिक रूप से पीछे वर्गों के लिए विकास हेतु विशिष्ट प्रावधान कर सकता है।
3. अनुच्छेद 16 :-
राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता होगी।
अपवाद :- अनुसूचित जाति ,अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़ा वर्ग।
4. अनुच्छेद 21 ;-
यह अनुच्छेद प्राण ,दैनिक स्वतंत्रताऔर संरक्षण के अधिकार की व्यवस्था करता है ।यह अधिकार स्त्री-पुरुष को समान संरक्षण देता है।
5. अनुच्छेद 23 :-
इसके द्वारा किसी व्यक्ति की खरीद -बिक्री बेगारी तथा इसी प्रकार का अन्य जबरदस्ती लिया हुआ श्रम निषिद्ध ठहराया गया है, जिसका उल्लंघन विधि के अनुसार दंडनीय अपराध है।
6.अनुच्छेद 24 :-
इस अनुछेद के द्वारा 14 वर्ष से कम आयु वाले किसी बच्चे को कारखानों, खान या अन्य किसी जोखिम भरे काम पर नियुक्ति नहीं किया जा सकता है।
7. अनुच्छेद 25 :-
कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म को मान सकता है और उसका प्रचार प्रसार कर सकता है।
8. अनुच्छेद 39 :-
पुरुषों और स्त्रियों ,दोनों को समान रुप से जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार है पुरुष और स्त्री को समान कार्य हेतु समान वेतन प्राप्त करने का अधिकार है।
9. अनुच्छेद 42 :-
राज्य काम करने की न्यायपरक एवं मानवीय परिस्थितियाँ पैदा करेगा और मातृत्व लाभ देना सुनिश्चित करेगा । इस प्रकार गर्भवती और दूध पिलाने वाली महिलाओं के हितो की रक्षा करने का प्रावधान है ।
10.अनुच्छेद 51 :-
प्रत्येकक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह ऐसी प्रथा का त्याग करें जो स्त्री के विरूद्ध है। संविधान के नीति निर्देशक तत्वो में महिलाओं के अधिकार सुनिश्चित किए गए हैं।
महिला मानव अधिकारों के संबंध में अधिकार:-
1. चलचित्र अधिनियम 1952 :-
इस अधिनियम में सेंसर बोर्ड के गठन का प्रावधान है ,जो ऐसे फिल्म पर लोक लगाएगा जिससे महिलाओं की मर्यादा भंग होती है।
2.स्त्री विशेष रुपेण (प्रतिबंध) 1986:-
इस अधिनियम के अंतर्गत किसी भी महिलाओं को इस प्रकार सिर्फ नहीं किया जा सकता जिसे उसकी सार्वजनिक नैतिकता को आघात पहुंचता है समस्त विज्ञापन प्रकाशन आदि में अश्लीलता पर प्रतिबंध लगाया गया है
3.प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम 1994:-
इस अधिनियम द्वारा गर्भावस्था में बालिका भ्रूण की पहचान करने पर रोक लगाई गई है।
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